दुर्गा!
दुर्गतिनाशक हो तुम
आद्य शक्ति हो तुम तो माता
अनिकेतन भूखे आमाशय
वर्षा में भी रिक्त जलाशय
शेष मनुजता
पाप कर्म दुख
राग-रंगिता सभी अर्थ सुख
खुली आँख कुछ आँखें मीचे
सब तेरे त्रिशूल के नीचे
हे संहारी!
हे संचारी!
सर्वभूत सर्वार्थ साधिके
सभी निवेदन तुम्हें पता हैं
अन्तर-वर्हि सभी की ज्ञाता
आद्य शक्ति तुम ही हो माता।
दुर्गतिनाशक हो तुम
दुर्गा !!
- निर्मल शुक्ल
१५ अक्तूबर २०१५ |