शक्ति का
वर माँग तुमसे माँ भवानी!
छू रही नारी शिखर
उल्लास का।
जग चुकी है रूढ़ियों की
छोड़ शैय्या।
अब नहीं वो द्रौपदी, सीता
अहिल्या।
चाल हर शतरंज की वो
जानती है।
ऊँट, रानी हो कि हाथी, या
अढैया।
रच रही वो
जीत की अनमिट कहानी
फाड़ पन्ना हार के
इतिहास का।
भव मनाता पर्व जब नव
रात्रियों का
ओज नारी पर उतरता
देवियों सा।
क्यों नहीं अभिमान हो निज
पर उसे फिर
जब उसे जन पूजकर
सम्मान देता।
ज्योति यह
नारी! अखंडित जगमगानी
बुझ न पाए अब दिया
विश्वास का।
- कल्पना रामानी
१५ अक्तूबर २०१५ |