अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

देवी वंदना

 

 

 

हे करुणामयि! हे ममतामयि!
भक्तवत्सला मातु
नमामि!

नाना लोभ
मोह मद मत्सर
करते घात अपरबल निशिचर
माँ! सकोप संहारो इनको
आर्तनाद करते तव अनुचर

हे भयहारिणि! हे भवतारिणि!
कालि-मंगला मातु
नमामि!

काम क्रोध
तृष्णा भयकारी
विषय वासना से मति हारी
भँवर पड़े माँ, तारो हमको
सब तज आये शरण तुम्हारी

हे अरिमर्दिनि! हे सुखसर्जिनि!
कीर्तिउज्ज्वला मातु
नमामि!

निज चरणों
की भक्ति मुझे दो
पूजन की भी शक्ति मुझे दो
निशिदिन ध्याऊँ तुमको माता
वह अनुपम अनुरक्ति मुझे दो

हे दुःखभंजिनि! हे मनरंजिनि!
शांत शीतला मातु
नमामि!

- अमिताभ त्रिपाठी 'अमित'
१५ अक्तूबर २०१५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter