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माँ की जयजयकार

 

 

 
घट स्थापित, रत-जागरण, जब होते चहुँ ओर।
माँ की जय-जय कार से, दिशि-दिशि मचता शोर।

भव बाधाओं को हरो, हे माँ! पालनहार।
जीवन-नैय्या अब करो, भव सागर से पार।

हे माँ! मंगलकारणी, करो दुखों का नाश।
बुद्धि-प्रदा, वरदायिनी, दे दो ज्ञानाकाश।

मना रहे हम आदि से, नवरात्रों का पर्व।
झूम-झूम गरबा करें, होता 'मंजू' गर्व।

नव-दुर्गा के रूप की, महिमा अपरम्पार।
आती जग में दौड़कर, सुन के करुण पुकार।

- मंजु गुप्ता
१५ अक्तूबर २०१५

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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