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दुर्गा मैया

 

 

 
बरस बाद फिर मिलने आई
खुशियों से घर भरने आई
नाचे गरबा ता ता थैया
कौन सहेली? दुर्गा मैया।

नवल रूप धरती नौ रात
आशीषों की हो बरसात
घोर विपद एक अवलम्बा
कोई जादू? नहिं जगदम्बा।

सकल सृष्टि का बीज उसी में
माया अगणित विश्व उसी में
शक्ति असीमित असुर विनाशिनि
कौन देवि? महिषासुर मर्दिनि।

इंतज़ार उसका करते सब
स्वागत की तैयारी में अब
नृत्य-गान लालायित कुनबा
को सखि साजन? नहिं री गरबा।

- ज्योतिर्मयी पंत
१५ अक्तूबर २०१५

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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