माँ के द्वारे शीश नवाते देव
यक्ष औ' ज्ञानी
तरा वही जिसने भी माँ की करुणा ममता जानी
यह जग इसके बड़े झमेले कुछ भी सूझ न पाए
विकल चित्त को धीरज देतीं गौरांगी कल्याणी
कुंकुम कुसुम फलों से पूजें पावन-मन नर-नारी
नौ-निशि के उपवास की महिमा कभी न जाए बखानी
आस्थाहीन हृदय भी पाता शक्ति भक्ति की न्यारी
त्रिभुवन में है नहीं कहीं भी त्रिपुरेश्वरि का सानी
नवग्रह की गति सीधी रखतीं नवरूपों में माता
सदा सुनें हम तन्मय क्षण-क्षण मंगल अमृतवाणी
जीवन की निधि, दर्शन का सुख, मन का उत्प्रेरण है
माँ की आलोकित चूनरिया लाल रहे या धानी
- अश्विनी कुमार विष्णु
१५ अक्तूबर २०१५ |