आरती के थाल जब सजने लगे।
माँ तेरे हम द्वार पर चढने लगे।
भोर में होने लगे कीर्तन-भजन
नारियल, परसाद तब चढ़ने लगे।
हम सबों पर अंबे माँ किरपा करो
अब दुआ में हाथ ये उठने लगे।
पाप की जितनी हैं मटकी फोड़ दो
पापियों के दंश अब चुभने लगे।
आज 'आभा' फिर नमन है कर रही
उसके सब संताप अब मिटने लगे।
- आभा सक्सेना
१५ अक्तूबर २०१५ |