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काश मैं कुछ कर पाती

 

 

 
दुनिया की खुशियाँ माँ तेरे आँचल में भर पाती
काश मैं कुछ कर पाती

पाई सुरक्षा तन में तेरे तुझसे ही तो जन्म मिला
जन्मदायिनी पीड़ा पाकर भी तेरा मुख कमल खिला
माँ तेरा वह दिव्य रूप
मैं सदा याद रख पाती

तेरी पीड़ा में शामिल मैं भले नहीं हो पाती
सलवट तेरे माथे की, मेरे आँसू बन जाती
माँ की मौन वेदना पर
मैं कुछ मरहम धर पाती

नीड़ अमिट नहिं रह पाते, ना ही पंछी रुकते हैं
तृण के हर इक टुकड़े को, माँ के सपने बुनते हैं
तेरे बुने हुए सपनों को
काश मैं सच कर पाती

कितनी रातें जागी माँ, कितने दिन खोए प्यारे
गणित लगाऊँ कैसे मैं, हैं गुणा भाग सब हारे
माँ तेरे सभी सजीले पल
वो दिवस रात लौटाती

- सीमा हरि शर्मा
२९ सितंबर २०१४

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