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जिन प्यारों की, ठंडी छाया
में तुम पल कर बड़े हुए हो
जिस आँचल में रहे सुरक्षित
जग के सम्मुख खड़े हुए हो
उस ममता को छोड़ अकेला, कैसे भूले अम्मा को
घर न भूले, खेत न भूले, केवल भूले, अम्मा को
उस सीने पर थपकी पाकर
तुम्हे नींद आ जाती थी
उस ऊँगली को पकडे कैसे
चाल बदल सी, जाती थी
वो ताक़त कमज़ोर दिनों में, धोखा देती अम्मा को
काले घने, अँधेरे घेरें, धीरे धीरे, अम्मा को
जिस सुंदर चेहरे को पाकर
रोते रोते चुप हो जाते
जिस कंधे का अनुभव करके
तुम अपने को रक्षित पाते
आज वे कंधे बीमारी से, दर्द दे रहे, अम्मा को
इकलापन भी, खाए जाता, धीरे धीरे अम्मा को
कितने अरमानों से उसने
भैया तेरा व्याह रचाया
कितनी आशाओं से उसने
अपना बेटा, बड़ा बनाया
रातें बीतें, करवट बदले, नींद न आये अम्मा को
कौन सहारा देगा इनको, नज़र न आये अम्मा को
वही पुराना, आश्रय तेरा,
आज बहुत बीमार हुआ है
जिसने तुमको पाला पोसा
आज बहुत लाचार हुआ है
कैसा शाप मिला था भैया, तेरे जन्म से अम्मा को
बीवी पाकर, कुछ बरसों में, भूले केवल अम्मा को
- सतीश सक्सेना
२९ सितंबर २०१४ |