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चॉकलेट
कम खाई मैंने
लेकिन पाया माँ का प्यार
घर में रहनेवाली माँ थीं
घर ही था उनका संसार
हँसते-हँसते
दिनभर खटतीं
लगी गृहस्थी कभी न भार
गरम पराठे दूध-मलाई
फिर भी नखरे
मेरे हजार
न दाई का दूध चुराना
न मेरे हिस्से का खाना
खुद ही
उबटन-तेल लगाकर
थपकी देकर मुझे सुलाना
पल भर को भी बाहर जाऊँ
तो आने तक
तकतीं द्वार
नहीं बोर्डिंग का सुख पाया
न पड़ोस में समय बिताया,
क्रेच व बेबी सिटिंग
कहाँ थे
था माँ के आँचल का साया
जन्मदिवस पर केक न काटा
किंतु गुलगुलों
की भरमार
- ओमप्रकाश तिवारी
२९ सितंबर २०१४ |