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बाबूजी थे पंडित - ज्ञानी
अब अम्मा की सुनो कहानी
नाना-मामा की 'बिट्टी' थीं
अम्मा-आँगन की मिट्टी थीं
बचपन से थीं हुईं सयानी
बाली उमर ब्याह कर आईं
अम्मा हुईं घनी परछाईं
महकीं - हुईं रात की रानी
अम्मा ने हमको दुलराया
सबको सुख दे ख़ुद को पाया
दिल था उनका बहता पानी
धरती थीं - आकाश सँजोया
बीज प्यार का घर में बोया
मीठी थी अम्मा की बानी
जादू अम्मा का था ऐसा
यों तो बहुत नहीं था पैसा
सुख-समृद्धि की वे थीं दानी
दुख अम्मा ने सबके बाँटे
फूल हुईं वे - बीने काँटे
खुशबू-खुशबू ही थीं यानी
रामकथा अम्मा ने बाँची
अम्मा की बानी थी साँची
रहीं हमारी वे गुरुआनी
सहे सभी उत्पात हमारे
दुख भी दुनिया भर के सारे
रहीं हमेशा ही वे मानी
अम्मा थीं सूरज की गाथा
रंग साँवला - ऊँचा माथा
वे थीं घर-भर की कल्याणी
हमें न व्यापे कोई भी ग़म
कल्पवृक्ष के रहे तले हम
अम्मा की थी वही निशानी
सुख-दुख दोनों में समान थीं
अम्मा, सच में, महाप्राण थीं
हाँ, उनका था कोई न सानी
'इदन्नमम' - है सब कुछ प्रभु का
क्या कहते हैं दास मलूका
अम्मा से ही हमने जानी
हमें दिये अम्मा ने सपने
सबके सुख-दुख मानो अपने
परसों अम्मा चिता समानी
सभी धर्म-मज़हब-पंथों में
दुनिया-भर के सब ग्रंथों में
माँ की महिमा गयी बखानी
हम अम्मा की याद करेंगे
हरसिंगार के फूल झरेंगे
ऋतु आयेगी जब पहचानी
- कुमार रवीन्द्र
२९ सितंबर २०१४ |