अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

कौन उबारेगा तुम बिन

 

 

 
कौन उबारेगा तुम बिन
मैं बह जाऊँगा धार में
ना मैया
इस तरह न छोड़ो
मुझको इस मँझधार में

मैं अबोध शिशु हूँ, माँ तुम
वात्सल्य, दुलार न दोगी क्या
मुझसे आँचल हो छुड़ा रही
ऐसी भी भूल हुई है क्या

लो माना भूल हुई मुझसे
अब ये न कहो माँगी न क्षमा
बिन माँगे माँ की ममता भी
क्या नहीं मेरे अधिकार में ?
ना मैया
इस तरह न छोड़ो
मुझको इस मँझधार में

नटखट हूँ
चुप बैठूँ तो सब मुझे कहेंगे बेचारा
बोलो माँ क्या सह लोगी मैं
हूँ माँ के रहते असहारा

लाख पुकारूँ पर
चुटिया खींचे बिन कहाँ सुना तुमने
रूठी हो अब क्यों विस्मृत कर
बचपना मेरे आचार में ?
ना मैया
इस तरह न छोड़ो
मुझको इस मँझधार में

लोटूँगा, जिद है मेरी
कितना उर को रोकोगी माँ
जब उमड़ेगी ममता मन की
आँसू खुद ही पोंछोगी माँ

निर्मम करने की सीमा तक
तुम खूब हृदय निर्मम कर लो
टूटेगा बाँध पसीजोगी
रोऊँगा इस आसार में ?
ना मैया
इस तरह न छोड़ो
मुझको इस मँझधार में

कृष्ण नन्दन मौर्य
२९ सितंबर २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter