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माँ

 

 

 

चूल्हे की जलती रोटी सी
तेज आँच में जलती माँ !
भीतर-भीतर
बलके फिर भी
बाहर नहीं उबलती माँ !

धागे-धागे यादें बुनती
खुद को नई रुई सा धुनती
दिन भर
तनी ताँत सी बजती
घर -आँगन में चलती माँ !

सिर पर रखे हुए पूरा घर
अपनी भूख-प्यास से ऊपर
घर को
नया जन्म देने में
धीरे-धीरे गलती माँ !

फटी-पुरानी मैली धोती
साँस-साँस में खुशबू बोती
धूप-छाँह में
बनी एक सी
चेहरा नहीं बदलती माँ !

- कौशलेन्द्र
२९ सितंबर २०१४

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