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माँ तुम्हारी गंध

 

 

 

फूल हरसिंगार सी झरती हुई
माँ तुम्हारी
गन्ध घर भर में बसी है।

तुम नहीं माँ
पर तुम्हारी याद हैं
प्यार के फटकार के
सम्वाद हैं।

माँ तुम्हारे क्रोध मिश्रित कोसने में
छिप रही अनजान सी
अब भी हँसी है।

तुम पिता के सामने
इक ओट थीं।
नारियल से पिता
तुम अखरोट थीं।

माँ हमारी नई पीढ़ी के लिए भी
याद वत्सलता लिए
पुचकार सी है।

- जगदीश पंकज
२९ सितंबर २०१४

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