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जागरण की रात

 

 

 
जागरण की रात है
माँ जागरण की रात
छवि अलौकिक के भजन की
स्मरण की रात

अंक में जननी के पाया
माँ दुलार तेरा
हर प्रलय से तार लाया
हमें प्यार तेरा
खिल रही करुणा-कृपा के
संचयन की रात

तामसी जो वृत्तियाँ हैं
चित्त की हों मौन
बस तेरी जयकार गूँजे
सदा मन के भौन
भावपावन भक्तिपूरण
आचरण की रात

हों अगर संकल्प दुर्बल
शक्ति देना माँ
डगमगाएँ पाँव पथ में
थाम लेना माँ
सिद्धिदायक हो तेरे
दर्शन-मिलन की रात

- अश्विनी कुमार विष्णु
२९ सितंबर २०१४

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