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माँ तुम अपने साथ ले गयीं
मेरा बचपन भी।
जब तक थीं तुम
मुझमें मेरा
शिशु भी जीवित था
वात्सल्य से सिंचित
मन का
बिरवा पुष्पित था
रंग-गंध से हीन हो गए
रोली-चन्दन भी।
झिड़की, डाँट-डपट
भी तुम थी
तुम थी रोषमयी
सहज स्नेह सलिला
भी तुम थी
तुम थी तोषमयी
सुधियाँ दुहराती हैं खट्टी-
मीठी अनबन भी।
मुझे कष्ट में देख
स्वयं का
दुःख तुम भूल गयीं
कितने देवालय पूजे
घंटो पर
झूल गयीं
रोम-रोम ऋण से सिंचित है
उपकृत जीवन भी।
- अमित
२९ सितंबर २०१४ |