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माँ तुम ही नवदुर्गा हो!

 

 

 

माँ, तुम तो
मौसम में बसंत हो
ममता की खुशबू से भरी
समीर सी शीतल
तुम खुद घर का
गतिमय आँगन हो

तुम्हारी गोद का झूला
भला कौन भूला?
बच्चों के जीवन में
सुरक्षा का बंधन हो तुम
तुम ममता की खान हो

नदी हो तुम दुआओं की
स्नेह का बहाव लिए
माँ तुम तो सच
गंगा का पावन जल हो
तुम संबल की चट्टान हो

पथरीली राह में तुम
कलकल बहता झरना हो
जीवन में संबल भर कर
बच्चों को राह दिखाने वाली
विश्वास की पहचान हो

तुम्हारा आँचल अब भी
तपती दोपहरी में
लगता है छाँव सा
ले जाता है सपनों में
चहचहाती चिड़िया सी
तुम आसमान की उड़ान हो

तुम तो माँ
भोर की लाली में जाग
हमारी दुनिया में
आशाओं के गीत बुनती हो
राह में यदि काँटे हों
अपने हाथों से चुनती हो
भावनाओं की रस भरी
तुम मीठी सुरीली तान हो

माँ, तुम तो
अपनी मंमतामयी लोरी से
हमारे जीवन में अनुभवों की
इंद्रधनुषी किताबें भी गुनती हो
मधुर रसों से भरे घट सी हो तुम
तुम तो अमृतपान हो

माँ, तुम ही हमारी नव दुर्गा हो
तुम ही हमारी पूजा हो
परिवार की परिधि में घूमता
तुम चलता फिरता मंदिर हो
हमारे लिए तो भगवान हो!

- डॉ सरस्वती माथुर
२९ सितंबर २०१४

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