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ममता की छाँव

 

 

 
माँ हर युग की आत्मा, माँ हर युग की शान।
जिसके गुण का गान तो, करते वेद पुरान।

माँ के गुण का कर सका, अब तक कौन बखान।
साँस वही, धड़कन वही, माँ जीवन माँ प्राण।

आँखें खोलीं माँ मिली, पहली-पहली बार।
माँ की ममता का मिले, सबको प्यार दुलार।

देकर हमको जो जनम, करती है उपकार।
माँ का कर सकता नहीं, कोई व्यक्त आभार।

जीवन भर देती हमें, वो ममता की छाँव।
माँ के आँचल के तले, हैं खुशियों के गाँव।

देती हमको है जनम, और दिखाती राह।
गले लगाकर प्यार से, फैला देती बाँह ।

कौन चुका पाया यहाँ, माँ का ऋण इक बार।
जाने कितने कर्ज वो, देती हमें उधार।

मॉं गीता का श्लोक है, माँ पूजा का फूल।
चरणों में जिसके मिले, सब धामों की धूल।

- सुरेन्द्र कुमार शर्मा
२९ सितंबर २०१४

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