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वह माँ है
दुआएँ भेजती है |
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वह अपनी आँखों में उमड़ी
घटाएँ भेजती है
वह अपने प्यार की ठंडी हवाएँ भेजती है
कभी तो ध्यान के हाथों, कभी पवन के साथ
वह माँ है, बेटे को शुभकामनाएँ भेजती है।
नज़र-नज़र नए मंज़र दिखाने लगती है
हरेक साँस पहेली बुझाने लगती है
सभी कला जिसे कहते हैं घर चलाने की
हमें वो गोद ही माँ की सिखाने लगती है।
खुशी के वास्ते सबकी, लुटा देती है सुख अपने
ज़रा सोचो कि वो जीवन में क्या अपने को देती है
उसे रहती नहीं इच्छा, न खाने की, न सोने की
माँ हमसे रूठकर भी तो सज़ा अपने को देती है।
इसी धुन में कि भावी पीढ़ियाँ आँगन में हँसती हैं
नहीं यौवन, वरन् जीवन ये अपना वार देती है
इसी माता की ममता पर फ़सल जीवन की निर्भर है
कि बच्चों के लिए ही माँ सपना वार देती है।
यहाँ माँ अपनी बेटी को, तो सासें अपनी बहुओं को
जो पुश्तों से सुरक्षित था, वो ज़ेवर सौंप जाती है
विरासत में जिसे ज़ेवर कहें वह तो बहाना है
जो सच पूछो तो ममता की धरोहर सौंप जाती है।
- मीना अग्रवाल
२९ सितंबर २०१४ |
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