अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

वह माँ है दुआएँ भेजती है

 

 

 
वह अपनी आँखों में उमड़ी घटाएँ भेजती है
वह अपने प्यार की ठंडी हवाएँ भेजती है
कभी तो ध्यान के हाथों, कभी पवन के साथ
वह माँ है, बेटे को शुभकामनाएँ भेजती है।

नज़र-नज़र नए मंज़र दिखाने लगती है
हरेक साँस पहेली बुझाने लगती है
सभी कला जिसे कहते हैं घर चलाने की
हमें वो गोद ही माँ की सिखाने लगती है।

खुशी के वास्ते सबकी, लुटा देती है सुख अपने
ज़रा सोचो कि वो जीवन में क्या अपने को देती है
उसे रहती नहीं इच्छा, न खाने की, न सोने की
माँ हमसे रूठकर भी तो सज़ा अपने को देती है।

इसी धुन में कि भावी पीढ़ियाँ आँगन में हँसती हैं
नहीं यौवन, वरन् जीवन ये अपना वार देती है
इसी माता की ममता पर फ़सल जीवन की निर्भर है
कि बच्चों के लिए ही माँ सपना वार देती है।

यहाँ माँ अपनी बेटी को, तो सासें अपनी बहुओं को
जो पुश्तों से सुरक्षित था, वो ज़ेवर सौंप जाती है
विरासत में जिसे ज़ेवर कहें वह तो बहाना है
जो सच पूछो तो ममता की धरोहर सौंप जाती है।

- मीना अग्रवाल
२९ सितंबर २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter