अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

माँ

 

 

 

ममता के गहरे सागर सी लगती है माँ।
जीवन पथ पर सुख के सपने बुनती है माँ।

अपने मुख पर दुख के भाव न आने देती।
संतानों हित सब कष्टों को सहती है माँ।

घर की खुशियों में वह आनन्दित हो लेती।
खुशियों के आँसू बनकर भी बहती है माँ।

बेटे के लघु क्रन्दन पर भी होती व्याकुल।
हर पीड़ा पर मरहम जैसी दिखती है माँ।

मन में खूब बसी है माँ की सुन्दर छवियाँ।
शायद मेरी हर धड़कन को सुनती है माँ।

उसकी सब यादें बिखरी हैं घर आँगन में।
मेरे मन में खुद से बातेँ करती है माँ।

हर देवी प्रतिमा में वह प्रतिबिंबित होती।
अपने सब भक्तों की पीड़ा हरती है माँ।

- सुरेन्द्रपाल वैद्य
२९ सितंबर २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter