ममता के गहरे सागर सी लगती
है माँ।
जीवन पथ पर सुख के सपने बुनती है माँ।
अपने मुख पर दुख के भाव न आने देती।
संतानों हित सब कष्टों को सहती है माँ।
घर की खुशियों में वह आनन्दित हो लेती।
खुशियों के आँसू बनकर भी बहती है माँ।
बेटे के लघु क्रन्दन पर भी होती व्याकुल।
हर पीड़ा पर मरहम जैसी दिखती है माँ।
मन में खूब बसी है माँ की सुन्दर छवियाँ।
शायद मेरी हर धड़कन को सुनती है माँ।
उसकी सब यादें बिखरी हैं घर आँगन में।
मेरे मन में खुद से बातेँ करती है माँ।
हर देवी प्रतिमा में वह प्रतिबिंबित होती।
अपने सब भक्तों की पीड़ा हरती है माँ।
- सुरेन्द्रपाल वैद्य
२९ सितंबर २०१४ |