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गुज़रे लम्हों में दे जाने की
इज़ाजत मौला
दे वही बचपन, वही शोख़ी, शरारत मौला
हैं गरीबी में जिन्हें ममता की दरकार नहीं
माँ ही तो होती है हर बच्चे की दौलत मौला
परवरिश खातिर सहे लाखों सितम दुनिया के
अब वही माँ है बनी घर की मुसीबत मौला
घर से निकले हैं कभी जब भी तो हथियारों में
माँ ही देती है मुझे दिल से हिफाज़त मौला
अब भली लगती है बचपन की हिदायत मुझको
फिर मुझे दे दे मेरी माँ की नसीहत मौला
- संजू शब्दिता
२९ सितंबर २०१४ |