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शाम ढले माँ दीये की बाती हो
जाती है,
पूरे घर में दर्ज़ उजाले सी हो जाती है.
झाड़ू पौंछा, चौका बर्तन इसके बाद किचिन,
माँ फिर सब्ज़ी दाल दही रोटी हो जाती है.
हैरत होती है कैसे माँ के हाथों की चाय,
हाथ लगा भर देने से मीठी हो जती है.
सोते सोते माँ को रात के बारह बजते हैं,
बाकी सब की पाँच बजे छुट्टी हो जाती है.
माँ तो माँ है सुन लेती है घर में जो बोले,
सुनने से क्या माँ कोई छोटी हो जाती है,
ताप चढ़े या दर्द वही एक एनासिन की डोज़,
जाने कैसे माँ इससे अच्छी हो जाती है.
नाना जी को बातें करते जब भी सुनता हूँ,
दो पल में माँ छोटी सी लड़की हो जाती है,
- अशोक रावत
२९ सितंबर २०१४ |