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जननी

 

 

 

स्मृति के पन्नो पर से
धुल जाता है
सब कुछ -- आहिस्ते - आहिस्ते
मिट जाती हैं रेखाएं
और न जाने क्या - क्या
सिर्फ याद आता है
माँ का चेहरा
जिसमे ईश्वर के चेहरे जैसी
आभा थी
ठीक वैसी ही, जैसे हो वह जगत जननी।

माँ मेरी ममतामयी, कल्याणमयी
जिसके आँचल में था सुख - ममता
आहा.... कितना प्यार छलकता था
तुम्हारे चेहरे से
सोचकर आज भी आनंदित होता रहता हूँ

माँ की ममता छाई हुई है चारों ओर,
विशाल आकाश को छूता हुआ उसका
पुत्र स्नेह।

शीर्ष स्थान को खुला रख,
मैं सिर्फ नत मस्तक रहता हूँ
माँ के चरणों में

शिबब्रत देवानजी
(मूल बांग्ला से हिंदी अनुवाद- मीता दास)
३० सितंबर २०१३

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