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शक्ति का आधार (हरिगीतिका)

 

 

 
 
हे अम्बिके जगदम्बिके तुम, विश्व पालनहार हो।
आद्या जया दुर्गा स्वरूपा, शक्ति का आधार हो।
शिव की प्रिया नारायणी, हे!, ताप हर कात्यायिनी।
तम की घनेरी रैन बीते, मात बन वरदायिनी।१।।

भव में भरे हैं आततायी, शूल तुम धारण करो।
हुंकार भर कर चण्डिके तुम, ओम उच्चारण करो।
त्रय वेद तेरी तीन आखें, भगवती अवतार हो।
काली क्षमा स्वाहा स्वधा तुम, देव तारणहार हो।२।।

कल्याणकारी दिव्य देवी, तुम सुखों का मूल हो।
भुवनेश्वरी आनंद रूपा, पद्म का तुम फूल हो।
भवमोचनी भाव्या भवानी, देवमाता शाम्भवी।
ले लो शरण में मात ब्राह्मी, एककन्या वैष्णवी।३।।

गिरिराज पुत्री पार्वती ही, रूप नव धर आ रही।
थाली सजे हैं धूप चंदन, शंख ध्वनि नभ छा रही।
देना हमें आशीष माता, काम सबके आ सकें।
तेरे चरण की वंदना में, हम परम सुख पा सकें।।४।।

-ऋता शेखर ‘‘मधु’’
३० सितंबर २०१३

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