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माँ उसी संगीत का ही नाम है

 

 

 
 
गीत से जिसके बहलती शाम है
माँ उसी संगीत का ही नाम है

माँ बिना तो नज़्म भी पूरी नहीं
हर ग़ज़ल की तर्ज़ भी नाकाम है

आज जिस आकाश पर मैं उड़ रही
ये उसी आशीष का परिणाम है

गोद में उसकी हमेशा सोचती
अब यहाँ आराम ही आराम है

जिंदगी की दौड़ जब मैं जीतती
आज भी देती मुझे ईनाम है

याद में उसकी भरी संदूकची
ये धरोहर प्यार की बेदाम है

माँ नही तो 'राज'अब ये सोचती
बिन तिरे मेरा कहाँ अब धाम है

दीप रोशन कर मुझे ख़ुद बुझ गया
रोशनी अब बाँटना निज काम है

- राजेश कुमारी
३० सितंबर २०१३

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