|
|
माँ
(हरिगीतिका) |
|
|
|
|
|
भगवान का उपहार माँ! भगवान
का अवतार माँ!
साक्षात् माँ भगवान है! है सृष्टि का शृंगार माँ!
भगवान की है श्रेष्ठतम रचना – कहे संसार; माँ!
जग पालता भगवान, जग की एक पालनहार माँ!
बच्चे बड़े कच्चे घड़े, दे रूप माँ! आकार माँ!
पाले, बनाए योग्य; देती है हमें संस्कार माँ!
बेटों! तुम्हारे प्राण-जीवन का सदा आधार माँ!
बूढ़ी हुई तो दूर की है, हाय! रिश्तेदार माँ?
- राजेन्द्र स्वर्णकार
३० सितंबर २०१३ |
|
|