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समृतियों में माँ!

 

 

 

हर किसी की
धूसर स्मृतियों में
होती है इक माँ
सपनों की परियों सी
हर सपने में
होती है इक माँ

दूध भात की
कटोरी की खातिर
तनिक चटोरी
बिटिया होती है
जुड़ीं नाल से इस पार
उस पार होती है माँ ,

मेरी भी है इक माँ
धूसर बालों वाली
सपनों की परियों सी
स्मृतियों के आँगन में
सुरक्षित
दूध भात का कटोरा थामे
नीले रंग की पोटली में
आशीर्वाद की डोर थामे
वैसी ही हो सुरक्षित
माँ का जीवन भी
पर ...अब माँ
झुकने लगी हैं
मन से नहीं
कमर से

बच्चों के सपनों की खातिर
अब भी समर में
अकेली
अब ...सपने हो चुके पूरे
उड़ चुके हर मौसम में
फूलों पर बैठ तितलियाँ
हर किसी के स्मृतियों में
धूसर बालों वाली
उतर आती है
इक माँ।

मीता दास
३० सितंबर २०१३

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