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माँ!
अपने ज़िस्म की माटी को,
गर्भ के चाक पर चढ़ा,
ममता के थपेड़ों से,
तुमने है मुझे गढा।
माँ,
तुम्हारी मुस्कानों ने,
तुम्हारे प्यार भरे स्पर्शों ने,
तुम्हारी साँसों ने,
तुम्हारे लहू ने,
प्राण-प्रतिष्ठा की है मुझमें।
माँ,
हर साँस में समाई,
तुम्हारी दुआ,
तुम्हारी आशीषें
आज भी मेरे,
कंटकाकीर्ण-पथ पर,
नरम पाँखुरियों का,
अहसास दे रही हैं ।
है नमन तुमको।
-मन्जु महिमा
३० सितंबर २०१३ |