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माँ बिन जीना भार

 

 

 
 
माता बिन सिरजन नहीं, बिन माँ जीना भार
खिले तभी जीवन चमन, माँ बरसाए प्यार

माँ शब्दों की कोठरी, माँ कविता की खान
माँ की मूरत में बसे, कोटि कोटि भगवान

मन दर्पण जब टूटता, धीरज देय बँधाय
आश्वासन की ढाल से, दुख को देय भगाय

किस्से और कहानियाँ, देकर सीख अनेक
बचपन से मिट्टी गढ़ी, हमें बनाया नेक

बने प्रात की लालिमा, देय सुखों की छाँह
पीर, पराई, परमहित, आश्रय देती बाँह

-मंजु गुप्ता
३० सितंबर २०१३

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