|
बूढी माँ का मन
अनमन है
उमर घटी है, समय नटी है
अब करतब दिखलाए
दो बेटों के बीच ठनी है, वो
किसको समझाए
आज स्वयं से ही
अनबन है
व्याकुल चित्त हुआ बूढी का
घडी-घडी घबराए
दोनों ही अपनी ऊँगली है
कितना किसे दबाए
हृदय में बढती
धड़कन है
शांत हो गयी लहरें बँटकर
माँ मझधार पड़ी
अपने ही घर के कोने में सहमी
सी रही खड़ी
पल पल तड़पन ही
तड़पन है
खांसी आती ताने लेकर
आफत नई -नई
आप बड़े कल छोटे का दिन
माँ है बँटी हुई
टुकड़ों पर पलता
जीवन है
-कृष्णकुमार तिवारी किशन
३० सितंबर २०१३ |