अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

बूढ़ी माँ का मन

 

 

 

बूढी माँ का मन
अनमन है

उमर घटी है, समय नटी है
अब करतब दिखलाए
दो बेटों के बीच ठनी है, वो
किसको समझाए

आज स्वयं से ही
अनबन है

व्याकुल चित्त हुआ बूढी का
घडी-घडी घबराए
दोनों ही अपनी ऊँगली है
कितना किसे दबाए

हृदय में बढती
धड़कन है

शांत हो गयी लहरें बँटकर
माँ मझधार पड़ी
अपने ही घर के कोने में सहमी
सी रही खड़ी

पल पल तड़पन ही
तड़पन है

खांसी आती ताने लेकर
आफत नई -नई
आप बड़े कल छोटे का दिन
माँ है बँटी हुई

टुकड़ों पर पलता
जीवन है

-कृष्णकुमार तिवारी किशन
३० सितंबर २०१३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter