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जननी प्राणाधार

 

 

 

छोटे शिशुओं के लिए, जननी प्राणाधार।
उसके ही आँचल तले, बढ़े रूप आकार।
बढ़े रूप आकार, चाहते बच्चे माँ को।
जब भी कष्ट सताय, नाम जिह्वा में वा को।
उम्र भले बढ़ जाय, कु समय मारता सोटे।
माँ ही बने सहाय, उसे लगते वे छोटे।

माँ का हर आशीष है, सकल कामना पूर।
आँचल का साया रहे, पास रहे या दूर।
पास रहे या दूर, कवच माँ की ममता का
कष्टों में बन ढाल, सामना हर विपदा का
सह लेती सब शूल,  वार देती अपनी जाँ
सभी सुखों का मूल कल्प तरु होती है माँ।.

बिन माँ के संभव नहीं, देख सकें संसार।
कोई गा सकता नहीं, महिमा अपरम्पार।
महिमा अपरम्पार, न हो उस जैसा कोई।
महाशक्ति का रूप, सकल जग पूजित होई।
दुख भव ताप निदान, कष्ट चाहे हों अनगिन।
पल में तारण हार, कौन रह पाए माँ बिन ?

रिश्ता एक यही सदा, जीवन में अनमोल।
माँ के सम आते नहीं, सुख सम्पति के तोल।
सुख सम्पति के तोल, होत पलड़ा अति भारी।
माता के उपकार, न चुकते दौलत वारी।
उऋण कभी न होंय, उपाय न कोई मिलता।
सर्वोपरि वरदान, एक ये सबको रिश्ता।

-ज्योतिर्मयी पंत
३० सितंबर २०१३

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