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माँ शारदा के प्रति (दुर्मिल सवैया)

 

 

 



उपकार करो निज बालक पे जननी परिहास करे जग है
छल दंभ भरा उर में बस है अरु मोह कि पाँस फँसे दृग है
किस भाँति करूँ विनती जननी यहँ द्वेष भरा रग ही रग है
रसना तुम शारद आन बसो फिर दूर नहीं हमसे मग है

चिदानंद शुक्ला संदोह
३० सितंबर २०१३
 

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