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स्मृति में माँ
वात्सल्य का हर क्षण
चम्पई सी मुस्कुराहट
अनुपमित स्नेह
और निवाए से हाथों ने
सीखों का एक गुच्छा बना कर
मन पर सजाया है
सजावट के अनुशासन में
बाँधे है हर उदगार
हर स्वप्न-सींचना
माँ की आँखों से आया है
प्राण-अनुषंग हर कोमल रंग
रही उनकी ही कृति
कि हरि ने उन्हें
यशोदांश की धारा की दिशाहीन गति
औ झक रजत चन्द्रिका का
अंतहीन फैलाव दिया है
हर मँझदार में वेदना-वेग पारती
माँ, तुम बहुत थक गई होगी
चिर मुस्कान से दीप्त नैन तुम्हारे
अब भी हमें ही खोज रहे हैं...
तुम्हारे पोरों की स्मृति
भूरी अलकों को
तैल-तोषती
आज भी...
उर-पोषण का
चिर अधिकार लिए है...
मेरा हर चिकना पत्ता
तुम्हारी नमी लिए है
छाया-छावनी की चाह लिए
मेरी हर कोंपल,
तकती है तुमको ...
तुम्हारे हर-सम्भव देने के इसी भाव के आगे
मेरा कर्तव्य सदा हारा है।
--स्वाती भालोटिया
१५ अक्तूबर २०१२
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