दिव्य शक्ति- माँ
माँ- मुस्काराती है
बच्चों के होठों पे
माँ- खिलखिलाती है
मंदिर की घंटियों-सी
माँ- गूँजती है दुर्गा की
लयबद्ध चालीसा सी
माँ -बोलती है जैसे हो
इबारतें गुरुवाणी की
माँ- गूँज है
मस्जिद की अजानो सी
माँ- हरियाती है घास सी
माँ -प्रार्थना है गिरजाघरों की
माँ- माटी है धरा की
माँ- महक है फूलों की
माँ - खुशबू है हाथों में लगी
लहरिया मेहँदी की
माँ -फुहार है वर्षा की और
माँ- तो सच में झंकार है
डाँडिया की एकबद्ध नाद पर
गरबा की लयबद्ध
जलतरंगों सी बजते तालों की
माँ- तो पूजा है नवदुर्गा की जो
नवरात्रि में दिव्य शक्ति के
मन्त्रों सी आबद्ध हो
नस नस में
उर्जा भर जाती है!
-डॉ सरस्वती माथुर
१५ अक्तूबर २०१२
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