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ममता का गाँव
माँ ममता का गाँव है, शुभाशीष की छाँव
कैसी भी सन्तान हो, माँ-चरणों में ठाँव
नारी भाषा भू नदी, प्रकृति- जननि हैं पाँच
माता का ऋण कोई सुत, चुका न सकता साँच
माता हँसकर पालती, अपने पुत्र अनेक
क्यों पुत्रों को भार सम लगती माता एक
रात-रात हँस जागती, सन्तति ले-ले नींद
माँ बाहर- अन्दर रहें, आज बीन्दणी-बींद
माँ-सन्तान अनेक हैं, सन्तति को माँ एक
माँ सेवा से हो 'सलिल', जागृत बुद्धि-विवेक
माँ के चरणों में बसे, सारे तीर्थस्थान
माँ की महिमा देव भी, सकते नहीं बखान.
नारी हो या भगवती, मानव या भगवान
माँ की नजरों में सभी, संतति एक समान
आस श्वास-प्रश्वास है, तम में प्रखर उजास
माँ अधरों का हास है, मरुथल में मधुमास
माँ बिन संतति का नहीं, हो सकता अस्तित्व
जान-बूझ बिसरा रही, क्यों संतति यह तत्व
माँ का दृग-जल है 'सलिल', पानी की प्राचीर
हर संकट हर हो सके, दृढ़ संबल मतिधीर
माँ की स्मृति दीप है, यादें मधुर सुवास
आँख मूँदकर सुमिर ले, माँ का हो आभास
--आचार्य संजीव सलिल
१५ अक्तूबर २०१२
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