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पाठ ममता का
पाठ ममता का
जमाने को पढ़ा कर रह गयी माँ
पालने से गिरा बेटा छटपटाकर
रह गयी माँ
बहन, बेटी, प्रेमिका, पत्नी
सदृश सम्बंध कितने
एक अल्हड सी
किशोरी
में रहे व्यक्तित्व कितने
पर तिरोहित हो गये सब शेष केवल
रह गयी माँ
खेलना छपकोरिया नल
खोलकर पानी गिराकर
फेंकना
सामान सारा
आलमारी से उठाकर
सैकडों बम्माछियों पर मुस्कुराकर
रह गयी माँ
रोज साडी और गहने
के लिये तकरार छूटा
शौक छूटे और
फैशन
अन्त में शृंगार छूटा
लाडले के लिये खुद को ही भुलाकर
रह गयी माँ
- रवि शंकर मिश्र रवि
१५ अक्तूबर २०१२ |