उस करुणा ममतामयी को
मेरे दिन औ रात
कृपा किरणों से जिसकी दर्पित हैं
उस करुणा ममतामयी को
मेरे सब पुण्य समर्पित हैं
आँचल की वत्सल छाया में
जिसकी आँखें खोली
डगर खेत खलिहान सदन
जो लिए अंक में डोली
अपनी तृषा क्षुधा पीड़ा दुःख
मेरे सुख पर वारी
मेरे विहँसे हँसी पा गयी
जैसे नौ निधि सारी
जिसके पुण्य मेरे जीवन में
कुसुमित फलित अपरिमित है
उस करुणा ममतामयी को
मेरे सब पुण्य समर्पित हैं
ग्रीष्म शरद पावस निशि-वासर
सम रत कर्म रही जो
कुल के झंझावत
काल के घात असंख्य सही जो
लेशमात्र भी अहं रहा न
जिसको निज गुण तन धन का
वह विराट में लीन हो गयी
ध्येय साध जीवन का
मेरी श्रद्धा के नैन कुसुम
अंजुरी भर जिसे समर्पित हैं.
उस करुणा ममतामयी को
मेरे सब पुण्य समर्पित हैं
१५ अकतूबर २०१२ |