गंगाजल सी माँ
पीतल के लोटे में
गंगाजल-सी माँ
बूँद-बूँद नेह छलकाती
बिछी दूब पर बादल बनकर
मिट्टी में घुल जाती
सूरज की उजली किरणों से
जब भी साहस पाती
रात अँधेरी रोशन करती
तारों को चमकाती
छुपी कहानी हर पल लगती
जब भी पढ़ने जाती
चिंगारी बन ज्वालामुखी की
जब भी डाँट लगाती
तितली सी मैं दुबकी-दुबकी
फूलों में छुप जाती
मुझे ढूँढने बच्ची बनकर
गीत दुलारे गाती
-पूर्णिमा वत्स
१५ अक्तूबर २०१२
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