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अलविदा माँ
दूर सुदूर बसी यादों में फिर डूबी उतराई माँ
रिश्तों के झुरमुट में खोई, छुईमुई मुरझाई माँ।
मन अथाह सागर सा तेरा, अनगिन भावों का आगार,
माप सका है कोई कहाँ उस ममता की गहराई माँ।
तुझसे सुने कहानी किस्से फिर बचपन में पहुँचाते हैं,
उन वक्तों को याद किया, तो फिर आँखें भर आई माँ।
तेरे होने पर कब समझा, तुझको खोने का अहसास
तड़पन और घुटन दे जाती गुपचुप तेरी विदाई माँ।
चेतन मन की चिंताएँ सब, हुई शांत, जब साँस रुकी
बन्धन टूटे, अपने छूटे, छूट गई परछाई माँ।
थमी हुई साँसों ने तेरी गहन मर्म यह समझाया,
भीड़ भरी सारी दुनिया में, होती क्या तनहाई माँ।
--ओम प्रकाश नौटियाल
१५ अक्तूबर २०१२
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