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माँ की स्मृति में
जब तक जीवन है,
साँस है, सपने है,
मुस्कराहट है, अकुलाहट है,
माँ हर ओर है,
घर में, चोके में, तरकारी की महक में,
बिछौने मे, पुराने खिलौने में,
माँ रहती है,
माँ की ख़ुशबू सोती है !
कहीं अन्दर, साथ चलती है वो मेरे,
सुनसान सी हवेली के सन्नाटे में,
डर की पहेली में,
अपनी किसी सहेली में,
मौसी के प्यार में,
किसी अपने के दुलार में,
हर अपने में,
माँ की ख़ुशबू सोती है !
काका की झडप में,
कुछ करने की ललक में,
हर फटकार में,
मनुहार में,
हर जीवन की सीख में, हर दुआ में,
हर अपने में,हर सपने में,
माँ की ख़ुशबू सोती है !
कही नहीं है, पर सब जगह है,
उसका अहसास, इश्वर का जेसे वास,
रहता है हर पल,
उसकी प्रतिछाया पलती है कही अन्दर,
मेरे हंसने में रोने में,
माँ की यादे सोती हैं !
थपथपा कर मुझे, खो जाती है क्यों ?
मुझे माँ इतनी याद आती है क्यों ?
--मंजुल भटनागर
१५ अक्तूबर २०१२
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