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माँ (सात कुंडलिया छंद)
माँ पूजा, माँ आरती, माँ को मानें ईश।
आँचल में अमृत भरा, मुख पर शुभ आशीष।
मुख पर शुभ आशीष, भरी ममता से झोली,
दुख लेकर सुख बाँट, बहुत खुश होती भोली।
नित्य नवाएँ शीश, जानिए माँ की महिमा,
प्रातः का यह मंत्र, वेद सी पावन है माँ!
माँ की ममता में निहित, यह अनंत आकाश।
गहराई है नीर सी, जगमग सूर्य प्रकाश।
जगमग सूर्य प्रकाश, यहीं है स्वर्ग धरा का,
अगर न इसकी ओट, दिखेगा हर सुख फीका।
माँ जन्मों का सार, सकल जीवन की झाँकी,
तीन लोक की ज्योत, निहित ममता में माँ की।
शक्ति नहीं है मातृ सम, मानें मेरी बात।
मन से माँ को पूजिए, श्रद्धानत दिन रात।
श्रद्धानत दिन रात, दिव्य रूपा है जननी,
यह जीवन का धर्म, कर्म, यह सब दुखहरणी।
कहे कल्पना साँच, श्रेष्ठतम भक्ति यही है,
कितने पूजें ईश, मातृ सम शक्ति नहीं है।
मिलता है बहु पुण्य से, माँ का माथे हाथ।
करें नमन माँ शक्ति को,भक्ति भाव के साथ।
भक्ति भाव के साथ, पूर्ण हों सकल इरादे,
शुभ ममत्व की छाँव, दुष्टतम दोष मिटा दे।
कहे कल्पना साँच, सुमन सा जीवन खिलता,
माथे माँ का हाथ, कई पुण्यों से मिलता।
शैशव बीता गोद में, बचपन भी भय मुक्त।
यौवन में आशीष सब, मातृ स्नेह से युक्त।
मातृ स्नेह से युक्त, मिले वरदान अनगिने।
सोए सुरभित सेज, बुन लिए सुंदर सपने।
माँ पर दें हम वार, मिला जो हमको वैभव,
आजीवन हो याद, सुहाना बचपन शैशव।
माँ बिन अपना कौन है, माँ बच्चों की जान।
जन्म नहीं केवल दिया, किए सकल सुख दान।
किए सकल सुख दान, कहाई जीवनधारा,
दुनिया का हर दोष, सिर्फ ममता से हारा।
माँ को करें प्रणाम, सफलता पाएँ हर दिन,
ममता की है खान, न कोई अपना माँ बिन।
माँ जैसा कोई नहीं, देख लिया संसार।
किश्ती थी मँझधार में, हमें उतारा पार।
हमें उतारा पार, सुख नहीं अपना देखा,
हर बाधा को बाँध, बना दी लक्ष्मण रेखा।
कहे कल्पना साँच, लाख हो रुपया पैसा,
देख लिया संसार, नहीं कोई माँ जैसा।
--कल्पना रामानी
१५ अक्तूबर २०१२
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