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माँ (चार कुंडलिया छंद)
मैया जीवन दायिनी, सब सुख का आधार,
माँ धरणी सम धारिणी, माँ नभ सा विस्तार।
माँ नभ सा विस्तार, स्नेह की अविरल धारा,
प्रतिपल मन की चाह, थाम लें हाथ तुम्हारा।
हमें उतरना पार, नाव की बनें खिवैया,
सर्व शक्ति, विश्वास, दें, वर दायिनी मैया।।१।।
मैंने कुछ बोला नहीं, रहे अधर बस मौन,
फिर मेरे मन की दशा, भला बताए कौन।
भला बताए कौन, दिलासा दे जाती हो,
देकर सरल निदान, मुश्किलें ले जाती हो।
संस्कार दिए वार, मुझे सुन्दर से गहने,
माँ तेरे उपहार, मान से पहने मैंने।।२।।
ममता की मूरत कहूँ, या ईश्वर का रूप,
दुःख का अँधियारा घिरे, माँ तुम उजली धूप।
माँ तुम उजली धूप, कभी हम पथ जो भूलें,
राह दिखाना आप, मंजिलें हँसकर छू लें।
हो जीवन का सार, याचना पावनता की,
पाएँ शक्ति अपार, मात तेरी ममता की।।३।।
माँ कहते ही आ गई, फिर मुख पर मुस्कान,
मुकुलित है मन की कली, हुए उमंगित प्रान।
हुए उमंगित प्रान, याद जब तेरी आए,
सुमना सी मन वास, साँस मेरी महकाए।
संग सखी सी आप, सदा रहती मेरे, हाँ,
आया क्या ना याद, मुझे बस कहते ही माँ।।४।।
--ज्योत्स्ना शर्मा
१५ अक्तूबर २०१२
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