कुछ छोटी कविताएँ
माँ, बड़ी, छोटी और दुःख
माँ ने
पुराने कपड़ो से बदल लिए बर्तन
पुरानी शीशियों
और टिन के डिब्बों के बदले ली
छोटी के लिए प्लास्टिक की चप्पल
पुराने अख़बारों के बदले पैसे
बड़ी की किताबों के लिए
माँ
कभी नहीं बदल पाई
अपना ढेर सा पुराना दुःख
किसी छोटी-सी खुशी से
-अंशु मालवीय
माँ
पूरे परिवार का बोझ उठाती हो
सारे दुःख–दर्द सहती हो माँ!
ऐसे कैसे रहती हो माँ ?
खुद दिए की रोशनी में
खाना पकाती हो
मुझे लैंप की रोशनी में पढ़ाती हो
सारा आभाव, गुस्सा, अपमान, प्रताड़ना
कैसे पी रही हों माँ ?
ऐसे कैसे जी रही हो माँ ?
--आदर्श नितिन
माँ के हाथ की रोटी
आसमान के चकले पर,
बादलों के बेलन से बेली गयी वो रोटी
तपती धूप में पकी होगी
साँझ के झौकों ने
उसे फूँककर ठंडा किया
और चाँदनी की तरह
परोसा मेरे लिए....
माँ के हाथों बनी सौंधी रोटी
सपनों मे भी नहीं
भूलपाता मैं
--रोहित रूसिया माँ
की याद
क्या देह बनाती है माँओं को ?
क्या समय ?या प्रतीक्षा ? या वह खुरदरी राख
जिससे हम बीन निकालते है अस्थियाँ ?
या यह कि हम मनुष्य हैं और एक
सामाजिक – सांस्कृतिक परंपरा है हमारी
जिसमें माँए सबसे ऊपर खड़ी की जाती रही हैं
बर्फीली चोटी पर,
और सबसे आगे
फायरिंग स्क्वैड के सामने।
-वीरेन डंगवाल
माँ
पिता पेड़ है
हम शाखाएँ हैं उनकी
माँ - छाल की तरह चिपकी हुई है पूरे पेड़ पर
जब भी चली है कुल्हाड़ी
पेड़ या उसकी शाखाओं पर
माँ ही गिरी हैं सबसे पहले
टुकड़े- टुकड़े होकर
--हरीश चन्द्र पांडे
दैवी है
तेरा आशीष
माँ
तू सचमुच देवी है
दैवी है तेरा स्नेह, तेरा आशीष
मन्त्रों और ऋचाओं की तरह पवित्र है तेरी वाणी
असीम है तेरा प्यार
तभी तो एक साथ
एक ही समय तू
हम सबके साथ होती है।
--नमन परम स्वरूप
माँ
आत्मा परमात्मा का नहीं
है माँ का अंश
जन्म लिया है जिसके गर्भ से
वही, मेरे लिए है परमहंस
माँ के अंक में है
अपार ममता और अपार प्रेम
यही मेरी पूजा यही नितनेम
जग में सबसे पवित्र ये बंधन
एक ही धड़कन, एक ही स्पंदन
माँ के आशीर्वाद से होते
पूरे मेरे सारे धरम और करम
चरण वंदनीय हैं उसके
स्वरूप उसी का है परम विक्रम
सिंह
१५ अक्तूबर २०१२ |