दिल जानता है माँ
चुभते हुए पलों में है राहत दरस तेरा
बदहालियों के दौर में हिम्मत दरस तेरा !
कैसे गिनाए मेरी कलम तेरी खूबियाँ
धरती पे है अगर तो है जन्नत दरस तेरा !
ये रंज़िशें ये नफ़रतें दुनिया के ढंग हैं
सब के लिए अमन दुआ चाहत दरस तेरा !
होती नहीं है फ़िक्र भी अपने गुनाह की
दिल जानता है माँ कि है रहमत दरस तेरा !
ख्वाहिश यही है और यही आरज़ू भी है
जनमो-जनम रहे मेरी आदत दरस तेरा !!
--अश्विनी कुमार विष्णु
१५ अक्तूबर २०१२
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