अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

ममतामयी
विश्वजाल पर माँ को समर्पित कविताओं का संकलन 

 

 

 

 


दिल जानता है माँ

चुभते हुए पलों में है राहत दरस तेरा
बदहालियों के दौर में हिम्मत दरस तेरा !

कैसे गिनाए मेरी कलम तेरी खूबियाँ
धरती पे है अगर तो है जन्नत दरस तेरा !

ये रंज़िशें ये नफ़रतें दुनिया के ढंग हैं
सब के लिए अमन दुआ चाहत दरस तेरा !

होती नहीं है फ़िक्र भी अपने गुनाह की
दिल जानता है माँ कि है रहमत दरस तेरा !

ख्वाहिश यही है और यही आरज़ू भी है
जनमो-जनम रहे मेरी आदत दरस तेरा !!

--अश्विनी कुमार विष्णु
१५ अक्तूबर २०१२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter