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कोहरा छाया |
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कोहरे में भोर हुई
कोहरे में
भोर हुई, दोपहरी कोहरे में
कोहरे में शाम हुई,रात हुई कोहरे में
कलियों के
खिलने की,आहट भी थमी हुई
तितली के पंखों की,हरक़त भी रुकी हुई
मधुमक्खी गुप-चुप है, चिड़िया भी डरी हुई
भौंरे के
गीतों की, मात हुई
कोहरे में
सरसों कुछ
रूठी है, गेहूँ गुस्साया है
तभी तो पसीना हर,पत्ती पर आया है
खेतों में सिहरन का,परचम लहराया है
मौसम पर
ठंडक की, घात हुई कोहरे में
घर में
हम क़ैद हुए, ठंड-भरी हवा चले
टोप पड़े सिर पर तो,मफ़लर भी पड़े गले
दौड़ रहे दबकर हम, कपड़ों के बोझ तले!
कपड़ों की
संख्या भी, सात हुई कोहरे में
भुने हुए
आलू की, गंध बहुत मन-भाती
चाय-भरे कुल्हड़ से, गर्माहट मिल जाती
आँखों ही आँखों में, बात नई बन जाती
साँसों से
साँसों की, बात हुई कोहरे में
- रावेंद्रकुमार रवि
१ दिसंबर २०२१ |
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