अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

     

           कोहरे में

हो रहा - अनुपम सवेरा कोहरे में
रात का - उठ चला डेरा कोहरे में

चाँद सा सूरज उगा है
गगन शीतलता पगा है
धूप पर पहरा लगा है
धुँधलके में रतजगा है
भोर का - बिछता बसेरा कोहरे में
चल रहा - सबकुछ अबेरा कोहरे में

पारदर्शी ले रजाई
सुगबुगाती किरन आई
बाड़ को रंगने लगी है
प्रात में डूबी ललाई
शिशिर का - जादू घनेरा कोहरे में
काम पर - निकला कमेरा कोहरे में

धुँध में जो ढँक रहा है
सत्य से वह बच रहा है
डूबकर जो रच रहा है
जो कहा वह सच रहा है
लग रहा- फिर भी अनेरा कोहरे में
क्या पता- क्या हेरा फेरा कोहरे में

जगत माया से ढँका है
सदा से दो में बँटा है
कुछ तो जगमग से अटा है
कहीं अँधियारा सटा है
जोगिया सच- है चितेरा कोहरे में
कोई भी - तेरा न मेरा कोहरे में

- पूर्णिमा वर्मन

१ दिसंबर २०२१
     

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter