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           छाई हुई है धुंध

अभी तक
छाई हुई है धुंध पथ में
सूर्य कब तक कोहरे में यों छिपोगे

मानती हूँ
तुहिन कण की रजत चादर
भावना की ऊष्मा को ढाँकती है
अरु खुले आकाश में ही यामिनी भी
कामनाओं के सितारे
टाँकती है

पिघल जायें ये क्षण अगर
कुछ बोल दो तुम
प्राण की इस बाँसुरी में गीत लय
तुम ही भरोगे

खो न जाये
कोहरे में लक्ष्य अपना
कहीं धूमिल हो न जाये मधुर सपना
देरियाँ भी छीन लेती हैं बहुत कुछ
राह ही दीवार बन जाये
न जाओ दूर इतना

प्रश्न बन कर
खड़ा होगा जब समय तो
सिर झुका कर
खड़े होगे क्या कहोगे

- मधु प्रधान
१ दिसंबर २०२१
     

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