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           कुहासे से घिरा दिनमान

मन कुहासे से घिरा दिनमान
खोता जा रहा पहचान

शून्य वन में राह भूले पथिक-सी
लाचार मानवता
सभ्यता के मंच पर अध्यक्ष हित
तैयार दानवता
बुद्धिवादी सिर फिरा इन्सान
होता जा रहा पाषाण

साँझ सूने घाट पर बैठा हुआ
धीवर बना मानव
मछलियों को फाँसने को ढूँढता
तरकीब बन दानव
सिर्फ पाने के लिए सम्मान
खोता जा रहा ईमान

--गिरिमोहन गुरु
१ दिसंबर २०२१

     

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