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       इस घने कोहरे से

चाहता है दूर जाना इस घने से कोहरे से
डर रहा है दिल बेचारा जिस घने से कोहरे से

कैसी दस्तक दी वबा ने, कितने अपने खो गए थे
शुक्र.. अब चमका है तारा उस घने से कोहरे से

एन मुमकिन है कि छँट जाए ये कोहरा दिल पे है जो
ज़िक्र करना है तुम्हारा बस, घने से कोहरे से

रात का काला सा घूँघट, हौसला नन्ही किरण का
और निकल आया सवेरा, उस घने से कोहरे से

रूमानी है सर्द मौसम, साथ कॉफी और हो तुम
अब शिकायत हो, तो क्यों हो, इस घने से कोहरे से

- सुवर्णा दीक्षित

१ दिसंबर २०२१
     

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