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          मौसम की हलचल

ओस करे पत्तों पर झलमल
बहे पवन सुरभित मृदु शीतल

नमी गुलाबी ठंडक बादल
अहो! सुखद मौसम की हलचल

धुंध ढाँप लेती दिनकर को
छितरा कर जब-तब निज आँचल

इधर कोहरा गजब ढा रहा
चारों ओर बिखेरे काजल

मन को धूप रिझाती झीनी
सुखकर हितकर निर्मल उज्ज्वल

करे समीरण मन आह्लादित
छुअन अनोखी प्रेमिल स्नेहिल

आहट सुन कर शीत-शगुन की
मुदित मुग्ध राजेन्द्र आजकल

- राजेन्द्र स्वर्णकार
१ दिसंबर २०२१
     

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